Automated Teller Machine (ATM) एक ऐसी कंप्यूटरीकृत डिवाइस है जो इंटरनेट से हर समय कनेक्ट रहती है और साथ ही आपके बैंक खाते से भी कनेक्ट रहती है|
इससे आप किसी भी समय बिना बैंक जाए अपने डेबिट कार्ड या क्रेडिट कार्ड जिसे प्लास्टिक मनी (Plastic Money) भी कहते है उनका इस्तेमाल कर रुपए निकाल सकते हैं| ATM का अविष्कार स्कॉटलैंड के जॉन शेफर्ड बैरन ने किया था|
इन्वेंटर जॉन शेफर्ड बैरन का जन्म 23 जून 1925 को मेघालय में हुआ था| इन्वेंटर जॉन शेफर्ड बैरन बैक पहुँचने में एक मिनट देर हो गए और उन्हें पैसे नहीं मिले तो उन्हें ऐसी एक मशीन बनाने का आइडिया आया जो हर समय पैसे दे सके, इन्वेंटर जॉन शेफर्ड बैरन ने पहले एटीएम पिन 6 डिजिट का रखा था लेकिन अपनी पत्नी के मना करने पर उन्होंने यह पिन 4 डिजिट कर दिया, कैश निकलने वाली पहली ए टी एम मशीन 27 जून 1967 को लंदन के बारक्लेज बैंक में लगायी गयी थी|
भारत में पहली बार 1987 में एटीएम की सुविधा शुरू हुई थी| भारत में पहला एटीएम हॉन्गकॉन्ग एंड शंघाई बैंकिंग कॉर्पोरेशन (एचएसबीसी) ने मुंबई में लगाया था, इसे स्वचालित गणक मशीन भी कहते हैं|
आइए जानते हैं ATM के बारे में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य आटोमेटिड टेलर मशीन क्या है – What is Automated Teller Machine
एटीएम के प्रकार (Types of ATMs)
ऑन साइट एटीएम (On-site ATM)
इस प्रकार के एटीएम बैंक की शाखा में ही लगे होते हैं यह शाखा के नजदीक होते हैं ताकि ग्राहक बैंक शाखा की सुविधाओं और एटीएम की सुविधाओं दोनों का प्रयोग एक साथ कर सकें इस प्रकार की ATM को ऑन साइट ATM कहते हैं|
ऑफ साइट एटीएम (Off-site ATM)
इस प्रकार के एटीएम उन स्थानों पर लगाए जाते हैं जहां पर काफी दूर तक बैंक की शाखा नहीं होती है ऐसे ATM की स्थापना ऐसे भौगोलिक क्षेत्रों को कवर करने के लिए ही की जाती है जहां पर दूर-दूर तक कोई भी बैंक नहीं है यानी इन की स्थापना स्टैंडअलोन के आधार पर की जाती है|
ब्राउन लेबल एटीएम (Brown Label ATM)
इसके लिए हार्डवेयर और पट्टटा प्राइवेट कंपनी का होता है, जबकि इन एटीएम में नकदी का प्रबंधन और बैंकिंग नेटवर्क की कनेक्टिविटी उस बैंक द्वारा रहती है जिसका ब्रांड ATM पर प्रयोग किया जाता है यानि मशीन किसी और की और पैसा बैंक का, ब्राउन लेबल एटीएम बैंक स्वामित्व वाली ATM और व्हाइट लेबल एटीएम के बीच का एक विकल्प होता है|
व्हाइट लेबल एटीएम (White Label ATM )
White Label ATM मशीन का स्वामित्व और संचालन दोनों ही गैर बैंकिंग संस्थाओं यानी प्राइवेट संस्थाओं के अंतर्गत होता है| किसी भी बैंक का ग्राहक एक सेवा शुल्क का भुगतान करके व्हाइट लेबल एटीएम से पैसा निकाल सकता है|
व्हाइट लेबल एटीएम पर किसी भी बैंक का लोगो नहीं होता है बल्कि उस कंपनी का लोगो होता है जो कंपनी इस ATM को चला रही है इस ATM पर जिस भी बैंक की भारत के पहले व्हाइट लेबल एटीएम की स्थापना Tata कंपनी ने मुंबई के निकट चंद्रपाडा स्थान पर की है| अब देश में कई जगह पर व्हाइट लेबल एटीएम लगाये जा चुके हैं|
हमे आशा है कि इस लेख द्वारा दी गयी जानकारी से आप संतुष्ट होंगे और आपको इस आर्टिकल से बहुत कुछ सिखने को मिला होगा।आपको इस आर्टिकल से सम्बंधित कोई डाउट हो सुझाव या किसी भी प्रकार की गलतियों को सुधार करवाने के लिये आप कमेंट बॉक्स में कमेंट कर सकते है|