भारत सरकार ने वित्तीय प्रणाली की तत्कालीन संरचना तथा उसके विभिन्न अवयवों की आलोचनात्मक विवेचन के लिए भारतीय रिजर्व बैंक के भूतपूर्व गवर्नर एम नरसिंहम की अध्यक्षता में अगस्त 1991 में एक 9 सदस्य समिति का गठन किया गया|
इस समिति की रिपोर्ट 17 नवंबर 1991 में संसद में पेश की गई भारत सरकार ने भारत में बैंकिंग प्रणालियों में सुधार के लिए कई सारी समितियों का गठन किया है इसमें से नरसिंहम समिति सबसे महत्वपूर्ण है|
आईये जानते हैं नरसिंहम समिति 1991 क्या है – What is Narasimhan Committee 1991
नरसिंहम समिति 1991 क्या है
नरसिंहम समिति ने अपने सुझाव कुछ इस प्रकार दिए –
- बैंकिंग संरचना में चार स्तर होनी चाहिए और सबसे ऊपर का हिस्सा स्टेट बैंक के साथ तीन और बड़े बैंक होनी चाहिए तथा सबसे निचले स्तर पर ग्रामीण बैंक होने चाहिए|
- बैंकों तक वित्तीय संस्थाओं पर निगरानी या निरीक्षण आत्मक काम की जिम्मेदारी रिजर्व बैंक के तत्वाधान में गठित एक अर्ध-स्वायत्त संस्था को सौंप देनी चाहिए|
- 8% पूंजी पर्याप्तता अनुपात को प्राप्त करने का अलग होना चाहिए यह काम में विभिन्न चरणों में संपन्न किया जा सकता है|
- शाखा लाइसेंस गत नीति को समाप्त कर दिया जाना चाहिए|
- वर्ष 1991 और 92 से वैधानिक तरलता अनुपात में धीरे-धीरे क्रमबद्ध कमी की जानी चाहिए|
- ब्याज दरों का नियमन समाप्त करके उन्हें चक्रवर्ती कमेटी के सुझाव के अनुसार बैंक दर से संबंधित कर देना चाहिए|
- वित्तीय संस्थाओं के बीच प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना चाहिए|
- भारतीय औद्योगिक विकास बैंक द्वारा केवल पुनर्वित्त का काम अपने पास रख कर प्रत्यक्ष ऋण देने का काम एक पृथक निगम इकाई को सौंप देना चाहिए|
तो कुछ इस प्रकार भारतीय अर्थव्यवस्था में 1991 के आर्थिक संकट के उपरान्त बैंकिंग क्षेत्र के सुधार के दृष्टिकोण से जून 1991 में एम. नरसिंहम की अध्यक्षता में नरसिंहम समिति अथवा वित्तीय क्षेत्रीय सुधार समिति की स्थापना की गई।
जिसने अपनी संस्तुतियां दिसंबर 1991 में प्रस्तुत की। नरसिंहम समिति की द्वितीय में स्थापना 1998 में हुई, जिसकी संस्तुतियों को अभी लागू करने की प्रक्रिया चल रही है।
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